Thursday, 16 June 2016

जिन्होंने प्रभु का नाम धन इकट्ठा कर रखा है वे निश्चित ही हँसते-हँसते जायेंगे


संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है की हम खुद अपने हाथों से अपनों को शमशान में जलाकर आते हैं और खुद ऐसे जीते हैं जैसे हम कभी मरेंगे ही नहीं। मृत्यु जीवन का कटु सत्य है एक दिन मरना सब को है। लेकिन कोई हँसते-हँसते मरेगा तो कोई रोते-रोते मरेगा परंतु जो प्रभु के भक्त हैं जिन्होंने प्रभु का नाम धन इकट्ठा कर रखा है वे निश्चित ही हँसते-हँसते जायेंगे। उनके सतकर्म उनको हंसने पर मजबूर कर देंगे। ये भागवत कथा हमें इन्ही सब बातों का बोध कराती है और जब हमारे करोड़ों-करोड़ों जन्मों के पुण्य उदय होते हैं तब हमें ये कथा श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। उक्त विचार पूज्य महाराज श्री ने अनन्त श्री विभूषित महंत पूज्य श्री नृत्यगोपाल दास जी महाराज के 78वें जन्मदिवस के शुभावसर पर प्रभु श्री राम की पावन जन्म स्थली अयोध्या में आयोजित विशाल श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिवस में व्यक्त किए। 
आज महाराज श्री ने प्रभु के महारास प्रसंग को प्रारंभ करते हुए कहा की आज की युवा पीढ़ी कहती है कि हमारे प्रभु भी रास करते थे तो हमारे रास रचाने में क्या बुराई है। अरे कलयुग के नौजवानों क्या तुम यह नहीं जानते की प्रभु ने रास में कामदेव को हराया था लेकिन तुम्हारे रास में कामदेव की जीत होती है,वासना हावी होती है लेकिन भगवान का रास वासना मुक्त होता है। प्रभु के रास पर संदेह करने से पहले हमें रास को समझना होगा। रास का अभिप्राय है आत्मा और परमात्मा का मिलन न की शारीरिक मिलन। भगवान की लीलाओं को समझने के लिए पहले हमें भगवान को समझना होगा। प्रभु ने कामदेव के अभिमान को तोड़ने के लिए रास रचाया था। 
आज कृष्ण-रुक्मणि विवाहोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। कथा के मुख्य यजमान ने सह-पत्नी कन्यादान की रश्म पूरी की और महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। कल कथा का विराम दिवस है।

॥ राधे - राधे ॥  बोलना पड़ेगा - और प्रेम से बोलना पड़ेगा

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